Mudra Sfiti Kya Hai | उसके प्रकार बताइए?

Mudra Sfiti Kya Hai | उसके प्रकार बताइए?

आज के लेख में आप जानेंगे “Mudra Sfiti Kya Hai” इसके अलावा इसके कितने प्रकार हैं, क्या कारण हैं एवं क्या प्रभाव व परिणाम है यह भी जान पाएंगे। तो चलिए हम सबसे पहले आपको बता दें मुद्रास्फीति के बारे में। तो मुद्रास्फीति का तात्पर्य बाजार की वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में हो रही लगातार वृद्धि से है।

मुद्रास्फीति की स्थिति में मुद्रा की कीमत कम हो जाती है क्योंकि उपभोक्ताओं को बाजार में वस्तुओं की खरीददारी के लिए सामान्यतः से कुछ अधिक कीमतों का भुगतान करना पड़ता है। आसान भाषा में समझे तो मुद्रास्फीति को महंगाई का पर्यायवाची शब्द मान सकते हैं।

मुद्रास्फीति यानी महंगाई किसी अर्थव्यवस्था में समय के साथ विभिन्न वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमतों में होने वाली एक सामान्य बढ़ोतरी को कहते हैं जब भी सामान्य मूल्य बढ़ते हैं तब मुद्रा की प्रत्येक इकाई की क्रम शक्ति में कमी आती है मतलब पहले जितने पैसे में जितनी वस्तुएं एवं सेवाएं मिलती थी उसमें कमी हो जाती है। मुद्रास्फीति का विपरीत अपस्फीति होता है, इस स्थिति में वस्तुओं व सेवाओं की कीमतों में गिरावट आती है।

मुद्रास्फीति के प्रकार

Mudra Sfiti Kya Hai

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मुख्य रूप से मुद्रास्फीति के दो प्रकार हैं पहला है मांग-मुद्रास्फीति और दूसरा है कॉस्ट-पुश मुद्रास्फीति।

मांग-मुद्रास्फीति :- मांग-मुद्रास्फीति को डिमांड पुल इन्फ्लेशन भी कहते हैं। यह ऐसी स्थिति होती है जब कुल मांग एक अस्थिर दर से बढ़ रही होती है जिससे दुर्लभ संसाधनों पर दबाव बढ़ने लगता है और परिणामस्वरूप एक सकारात्मक आउटपुट रह जाता है। Mudra Sfiti Kya Hai मुद्रास्फीति की मांग एक खतरा के रूप में तब नजर आती है जब किसी अर्थव्यवस्था द्वारा अनुभव किया गया हो कि सकल घरेलू उत्पाद(GDP) संभावित सकल घरेलू उत्पाद की लंबी अवधि की प्रवृत्ति वृद्धि की तुलना में काफी तेजी से बढ़ रही हो।

कॉस्टपुश मुद्रास्फीति :- यह ऐसी स्थिति होती है जब फर्म अपने लाभ मार्जिन के बचाव के खातिर कीमतों में वृद्धि करके बढ़ती लागत का जवाब देती है।

मद्रुास्फीति का सरंचनात्मक मॉडल

विकासशील देशों में विकास के प्रारंभिक चरणों में औद्योगिक क्षेत्रों के क्रियाकलापों में अधिक वृद्धि देखने को मिलती है जिसके फलस्वरूप गैर-कृषि आय में वृद्धि होती है। इसी के साथ जनसंख्या वृद्धि में भी वृद्धि दर तेज होती है इन सभी के परिणामस्वरूप कृषि उत्पादों की मांग बढ़ने लगती है तो कृषि क्षेत्र में मौजूद जटिलताओं के कारण कृषि उत्पादों की आपूर्ति में लचीलापन दिखता है।

इस प्रकार कृषि उत्पादों की आपूर्ति इनकी मांग के मुकाबले काफी पीछे होती है जो कृषि कीमतों में वृद्धि का परिणाम बनता है। इससे कृषि क्षेत्र में जीवन निर्वाह की लागत में वृद्धि आती है और उसके परिणाम स्वरूप कृषि क्षेत्र में मजदूरी की दर में भी वृद्धि होती है।

वहीं दूसरी और शहरी क्षेत्रों में जीवन लागतों में भी बढ़ोतरी होती है। औद्योगिक उत्पादों की कीमतों में वृद्धि, मजदूरी की दर में वृद्धि तथा सामान्य कीमत स्तरों में भी वृद्धि इसी का परिणाम है। जब अर्थव्यवस्था में समृद्धि होती है तो विभिन्न प्रकार की जड़ताएं जन्म लेती है जिसके कारण संरचनात्मक मुद्रास्फीति पैदा होती है।

आंशिक मद्रुास्फीति

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जे.एम.कींस की धारणा के अनुसार आंशिक मुद्रास्फीति पूर्ण रोजगार के पहले की अवस्था है। जब मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होने के चलते रोजगार एवं उत्पादन स्तर में भी वृद्धि देखने को मिलती है जिसके परिणाम में कीमत स्तर में वृद्धि धीमी गति में होती है। कींस के अनुसार, मुद्रास्फीति पूर्ण रोजगार के पश्चात की स्थिति होती है। Mudra Sfiti Kya Hai जब मुद्रा की मात्रा में आई वृद्धि मांग में वृद्धि उत्पन्न करती है लेकिन रोजगार एवं उत्पादन में किसी भी प्रकार की वृद्धि नहीं होती जिसके फलस्वरूप कीमत स्तर में तेज वृद्धि होने लगती है।

मद्रुास्फीति मापन के सूचकांक

मुद्रास्फीति के अंतर्गत एक सप्ताह या एक माह के किसी निश्चित समयावधि के भीतर कीमतों में वृद्धि की दर इसे आवश्यक वस्तुओं, ईंधन तथा निर्मित वस्तुओं एवं खाद सामग्री के संदर्भ में इनका आकलन किया जाता है। जब कहा जाता है कि मुद्रास्फीति दर में कमी हो रही है तो इसका अर्थ यह नहीं होता कि कीमतों में गिरावट आ रही है बल्कि इसका अर्थ यह है कि कीमत वृद्धि की दर में कमी आई है।

वहीं विकसित देशों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को मुद्रास्फीति मापन का आधार बनाया जाता है जिसमें फुटकर कीमतों की महत्वता नजर आती है। विकासशील अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति का कुछ-कुछ ही समावेश होता है। किसी भी अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति की दर को मापने के लिए सामान्यतः दो तरीकों को प्रयोग में लाया जाता है;-

  1. मूल्य सूचकांक (Price Index Number)
  2.  जीडीपी अवस्फीति में परिवर्तन

भारत में मद्रुास्फीति

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भारत में सबसे ज्यादा अपनाया जाने वाला मुद्रास्फीति संकेतक है ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’। देश की खुदरा मुद्रास्फीति जिसे CPI यानी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक द्वारा मापा जाता है यह 2022 के सितंबर माह में बढ़कर 7.4% तक पहुंच गई जो कि इसके 1 महीने पूर्व 7% थी। थोक मूल्य सूचकांक के आधार वर्ष में अब तक 7 बार संशोधन किया जा चुका है जिसकी सूची नीचे प्रस्तुत है।

  • 1992 से 1953 आधार वर्ष – 112 वस्तुएं
  • 1961 से 1962 आधार वर्ष – 139 वस्तुएं
  • 1970 से 1971 आधार वर्ष – 360 वस्तुएं
  • 1981 से 1982 आधार वर्ष – 447 वस्तुएं
  • 1993 से 1994 आधार वर्ष – 435 वस्तुएं
  • 2004 से 2005 आधार वर्ष – 676 वस्तुएं
  • 2011 से 2012 आधार वर्ष – 676 वस्तुएं।

मद्रुास्फीति के कारण

वैसे तो मुद्रास्फीति के कई कारण हैं लेकिन इनमें से दो प्रमुख कारण हैं;-

मांग कारक

  • सरकारी व्ययों में बढ़ोतरी जो कि मुख्य रूप से गैर योजना व्यय है। यह व्यय अनुत्पादक प्रकृति का होता है और यह सिर्फ और सिर्फ क्रय क्षमता एवं मांग में वृद्धि करता है।
  • मांग कारक, घाटे की पूर्ति तथा मुद्रा पूर्ति में वृद्धि से बढ़ते सरकारी व्यय की पूर्ति, घाटे के बजट में से तथा नई मुद्रा छाप कर की जाती है जो कि मुद्रास्फीति तथा आपूर्ति दोनों में वृद्धि करता है।

मूल्य वृद्धि कारक

  • उत्पादन आपूर्ति में उतार-चढ़ाव आना।
  • प्रशासित मूल्य में वृद्धि होना यानी जिन उत्पादों के मूल्य का निर्धारण सरकार करती है।
  • उत्पादकता से अधिक वेतन वृद्धि लागत मूल्य को बढ़ाते हैं जिससे मूल्य में मांग तथा क्रय क्षमता में वृद्धि होती है।
  • ढांचागत विकास में कमी या दोष के कारण भी प्रति इकाई लागत मूल्य में वृद्धि होती है।
  • अप्रत्यक्ष कर भी मूल्य में वृद्धि के जिम्मेदार हैं।

मद्रुास्फीति के प्रभाव या परिणाम

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मुद्रास्फीति के निम्न प्रभाव या परिणाम हैं;

  • मुद्रास्फीति का निवेशकर्ताओं पर काफी गहरा असर पड़ता है इसमें सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करने वाले वर्ग के निवेशकर्ताओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है लेकिन जो निवेशकर्ता संयुक्त पूंजी कंपनियों के हिस्से खरीदते हैं उन्हें इससे फायदा होता है।
  • इसमें निश्चित आय वर्ग वाले सभी कर्मचारियों को मुद्रास्फीति के दौरान नुकसान होता है क्योंकि उनकी आय निश्चित होती है और मुद्रास्फीति के दौरान कीमतें बढ़ती हैं।
  • कृषक वर्ग पर मुद्रास्फीति का सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है कीमतें बढ़ती हैं तो उन्हें लाभ मिलता है।
  • इसका बचत पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • मुद्रास्फीति के चलते उत्पादक तथा उद्यमी वर्ग के लोगों को लाभ कमाने का अवसर प्राप्त होता है।
  • एक निश्चित अवधि के भीतर वस्तुओं एवं सेवाओं की लागत में वृद्धि होने लगती है।

मद्रुास्फीति रोकने के उपाय

मुद्रास्फीति पर रोक लगाने के लिए मुख्य तीन उपायों को अपनाया जाता है जो निम्न है;-

मौद्रिक उपाय जिसमें निम्न बिंदु शामिल हैं;

  • मुद्रा की मात्रा पर नियंत्रण,
  • साख पर नियंत्रण,
  • विमुद्रीकरण।

साख पर नियंत्रण इसमें निम्न बिंदु शामिल हैं;

  • सार्वजनिक ऋणों में वृद्धि
  • सार्वजनिक व्यय में कमी
  • करों में वृद्धि 
  • घाटे की वित्त व्यवस्था में कमी

राजकोषीय नीति राजकोषीय नीति भी एक विकल्प है जिसके माध्यम से मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाया जा सकता है। मुद्रास्फीति के कारण राजकोषीय घाटे में कमी करके अर्थात हीनार्थ प्रबंधन पर अंकुश लगाकर विकासवादी या अनुत्पादी व्यय में कमी की जाती है।

प्रत्यक्ष प्रशासनिक उपाय प्रत्यक्ष प्रशासनिक उपाय प्रत्यक्ष रूप से या तो आपूर्ति में वृद्धि करने में सहायक होते हैं या फिर मांग में कमी लाने में।

अन्य उपाय

उत्पादन में वृद्धि (बढ़ोतरी) करके, कीमतों पर नियंत्रण तथा राशन व्यवस्था करके एवं बचत को प्रोत्साहन देकर मुद्रास्फीति को नियंत्रित किया जा सकता है।

मद्रुास्फीति लक्ष्यीकरण

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मुद्रास्फीति हर वर्ग के लोगों पर बुरा प्रभाव डालती है। मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण मौद्रिक नीति रणनीति को दर्शाता है जहां मुद्रास्फीति के एक लक्ष्य का निर्धारण किया जाता है जिससे कि उस टारगेट या लक्ष्य को पूरा किया जा सके।

आरबीआई द्वारा फरवरी 2015 में आधिकारिक तौर पर मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण को मौद्रिक नीति रणनीति के रूप में स्वीकारा गया जिसके तहत मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्रत्येक 5 वर्षों में एक बार संशोधित किया जाना सुनिश्चित किया गया। Mudra Sfiti Kya Hai अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि या कमी की जाएगी। मुद्रास्फीति (CPI, Consumer Price Index) के लिए सरकार द्वारा वर्ष 2021 तक +2 सीमा के साथ 4% का लक्ष्य रखा गया था।

मद्रुास्फीति का मापन

मुद्रास्फीति का मापन मुद्रास्फीति दर(Inflation Rate) से किया जाता है, मतलब एक वर्ष से दूसरे वर्ष के बीच के मूल्य वृद्धि का प्रतिशत।

केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय(CSO), सांख्यिकी तथा कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक(CPI) जारी किया जाता है जिसके आधार पर भारत में मुद्रास्फीति की दर मापी जाती है। अन्य देशों में मुद्रास्फीति को मापने के लिए थोक मूल्य सूचकांक तथा उत्पादक मूल्य सूचकांक संकेतकों को अपनाया जाता है किंतु भारत में इसके मापन के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का इस्तेमाल किया जाता है।

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